हरे कृष्णा चुनौती
हरे कृष्णा चुनौती– दिग्भ्रमित सभ्यता का पर्दाफाश नामक यह पुस्तिका विचार पूर्ण, विवाद युक्त तथा प्रासंगिक है। इस पुस्तक के अधिकांश निबंध श्रीला प्रभुपाद तथा उनके घनिष्ट शिष्यों के मध्य हुए वार्तालाप है। श्रीला प्रभुपाद पुनर्जन्म, अनियंत्रित यौन , गोहत्या , मांसाहार, आत्मा का आस्तित्व , समाज का सुधार, वैज्ञानिक प्रगति, सामाजिक क्रांति इत्यादि विषयो पर वैदिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते है। श्रीला प्रभुपाद एक परिपूर्ण वैदिक साधु है। साधु शब्द का एक अर्थ ” विच्छेद करने वाला” है और इस पुस्तक के पाठक निश्चित रूप से अनुभव करेंगे की उनके जीवन भर की भ्रांतियां विच्छेदित हो रही है। श्रीला प्रभुपाद कृष्णभावनामृत को आध्यात्मिक मूल्यों से विहीन समाज के लिए सकारात्मक विकल्प के रूप में शक्तिशाली ढंग से जिव उधार हेतु पुस्तक में प्रस्तुत करते है।
जब १९७७ की साल मध्य में हरे कृष्णा आंदोलन की पत्रिका “बैक तो गोडहेड ” में “श्रीला प्रभुपाद वाणी” नमक स्तम्भ में उनकी बातचीत के कुछ अंश प्रकट होने शुरू हुए , जिसमे श्रीला प्रभुपाद ने कृष्णभावनामृत के सिद्धांतो को अनुपचारिक तथा प्रभाव युक्त ढंग से प्रस्तुत किये। इस पुस्तक का निष्कर्ष सार्थक है और किसी भी विचारवान व्यक्ति को इसके आदि से अंत तक पढ़ना चाहिए।पाठको को आधुनिक जगत के प्रति एक शुद्ध भक्त के दृष्टिकोण को जानने का लाभ उठाने का अवसर मिलेगा। इस पुस्तक में संगृहीत निबंध श्रील प्रभुपाद के विशिष्ट भाव को चित्रित करते है।
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