मोह तथा संशय से परे
पश्चिम दर्शन व्यक्तिगत अटकलों पर भरोसा करता है जिसमे हमारी इन्द्रियों से सबूत लेना और हमारे दिमाग से इसका मूल्याकंत करना शामिल है और यह विधि हमें बहुत आनिनिस्चालत के साथ छोड़ देता है। आखिर हमारी इंद्रियां अपूर्ण है और हमारा मन ब्रह्म के अधीन है, गलतियाँ और धोखा देने की प्रवृत्ति में है। यह दिखावा करने के लिए की हम कुछ जानते है जबकि हम वास्तव में नहीं जानते है और जो पद्धति का उपयोग करता है वह कभी भी ब्रह्म और संदेह से मुक्त कुछ पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है क्योंकि यह अजीब अपूर्ण मन और इन्द्रियों के कारण होता है। १९७० के दर्शक की शुरुआत में, श्रीला प्रभुपाद ने वैदिक दर्शन के अलोक में पश्चिमी दर्शन का विष्लेषण करने का निर्णय लिया। वैदिक दर्शन का ज्ञान कृष्णा नाम से जाने जाने वाले सर्वोच्च प्रज्ञता भगवन से आता है। कृष्ण से उत्त्पन इस ज्ञान को आदिकाल से आध्यात्मिक गुरुओ की श्रृंखला के माध्यम से पारित किया गया है। और यह ज्ञान अपूर्ण मानव इन्द्रियों का उत्पाद नहीं है और यह संदेह से परे है। ब्रम्ह और संदेह से परे किताब टेप रिकॉर्ड पे की गई बातचीत पर आधारित है जो श्रीला प्रभुपाद जो उनके विद्वान् शिष्यों हयग्रीव दास और श्यामसुंदर दास द्वारा सुकरात प्लेटो अरस्तु जैसे प्रमुख पश्चिमी दार्शनिको की शिक्षाओं से प्रस्तुत की गई है। प्रभुपाद एक अंतदृष्टि विष्लेषण और प्रख्यात पश्चिमी दार्शनिको में से कुछ मुख विचारो की आलोचना एक वैदिक दृष्टिकोण से देते है। उन्होंने भक्तियोग की प्रक्रिया की रूपरेखा की जिसके द्वारा हम अपने जीवन में मोह तथा संशय को पार कर पूर्णता के पथ पर निश्चय के साथ आगे बढ़ सकते है। श्रीला प्रभुपाद ” मोह तथा संशय से परे ” अदि जितने भी ग्रन्थ छोड़ गए है , उनसे तथा उनकी सिक्षाओं को निष्ठापूर्वक आगे ले जाने वाले उनके अनुयाइयों से भी कृष्णभावनामृत के दर्शन, अभ्यास तथा लक्ष्योको जान सकते है और अपने जीवन को सफल बना सकते है।
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