नारद भक्ति सूत्र
चाहे कोई व्यक्ति अच्छा कार्य करे या बुरा उसे उसको भुगतने के लिए इस भौतिक जगत में आना ही पड़ेगा। जैसे ही उसके पाप और पुण्य कार्य क्षीण हो जाते है वह फिर से कर्म बंधनो में फसने लगता है । समृद्धि और संकट पुण्य तथा पाप की प्रतिक्रिया होती है। श्रीमद भागवत जैसे साहित्य में जीवन का सर्वोच्य लक्ष्य याने परमाननद की प्राप्ति जैसे प्रश्नो का उत्तर देती है। जीव की स्वाभाविक अवस्था ही निरंतर आननदमयी रहना है। यह कलियुग कलह का युग है इसीलिए कर्म बंधन से मुक्ति के इस वरदान को प्राप्त करना तभी संभव है जब हम अपने श्रम के फल को भगवान के सेवा में लगाते हैऔर इस प्रकार शाश्वत आननद और ज्ञान को प्राप्त करते है । एक महान कार्य करने वाला व्यक्ति की कहानिया और इतिहास सुनने के लिए जीवित इकाई स्वाभाविक रूप से उपयुक्त है। लेकिन भौतिक गतिविधियों के बारे में सुनने का कोई लाभ नहीं । क्योंकि वे हमे भौतिक प्रकृति के नियम से मुक्त करने का आश्वासन नहीं देती है। प्रत्येक क्रिया की एक परिणामी प्रक्रिया होती है और कलाकार ऐसे प्रक्रिया से बंधे होते है फिर चाहे वे अच्छे हो या बुरे। माया के चुँगल से मुक्त होने के प्रायः कोई व्यक्ति यह प्रश्न करता है की क्या मुझे वह सब कुछ छोड़ देना होगा जो में अभी कर रहा हु ? क्या मुझे अपना काम और परिवार छोड़ देना चाहिए ? यह पुस्तक ऐसे सारे मन में उठने वाले प्रश्नो का उत्तर देगी।
यह अपने कर्मो के फलो को अध्यात्म से जोड़ने के पहलु का प्रकाश करेगी जो निश्चित रूप से पूर्णता लता है । भक्ति , नदी के उस प्रवाह के भांति है जो अंततः सागर से जाके मिल जाती है। अतः भगवन के शुद्ध भक्त से सुना हुआ ज्ञान इस राह की सफलता का प्रमाण देता है । प्रेम करना और प्रेम पाना जीव का वास्तविक स्वाभाव है लेकिन जिव के भौतिक प्रकृति के साथ जुड़ाव के कारन यह प्रवृत्ति ढकी हुई है । इस प्रकार यह पुस्तक निश्चित रूप से पूर्णता के प्रक्रिया और मार्ग को प्रकट करेगी। आम तौर पर श्री नारद मुनि को टीवी सीरियल में या अनेक धारावाहिको में गलत रूप से दर्शाया जाता है। इसीलिए लोग उनकी महानता को समझा नहीं पाते । उन्हें महज़ एक हास्य पात्र रूप से बताया जाता है। परन्तु ऐसा नहीं है श्री नारद मुनि एक भगवान के महान भक्त है यह पुस्तक उनकी उच्चतम स्थान को भी प्रकाशित करेगी। नारद मुनि के कई शिष्य थे जैसे की ध्रुव महाराज , व्यासदेव , मृगारी , प्रह्लाद महाराज इत्यादि।
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