श्रीचैतन्य – चरितामृत
श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी द्वारा रचित श्रीचैतन्य चरितामृत श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के जीवन तथा उपदेशो का मुख्य ग्रन्थ हैं। यहाँ प्रस्तुत की गयी भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं एवं भागवत गीता में दी गई भगवान् श्रीकृष्ण की शिक्षाओं में कोई अंतर नहीं है। भगवान् चैतन्य की शिक्षाए भगवान् कृष्ण की शिक्षाओं के व्यवारिक प्रदर्शन है। भगवन चैतन्य जीवन की मूल आवश्यक्ताओ के आदर्श शिक्षक हैं। वे कृष्ण प्रेम के सर्वश्रेष्ठ वदान्य दाता हैं। वे समस्त करुणा तथा सौभाग्य के पूर्ण रूप है। श्रीमद्भागवत ,भगवतगीता, महाभारत तथा उपनिषदों में पुष्टि हुई है की वे साक्षात् पूर्ण पुरुषोत्तम भगवन कृष्ण है और इस कलियुग में वे सबो के आराध्य है। भगवन चैतन्य की शिक्षाओं का पालन करने मात्र से ही कोई व् व्यक्ति पूर्ण मानव बन सकता है और यदि कोई मनुष्य इतना भाग्यशाली हो की वह भगवान् श्रीचैतन्य के द्वारा आकृष्ट होता हैं, तो उसे अपने जीवन-लक्ष्य में सफलता अवश्य प्राप्त होगी। दूसरे शब्दों में जो लोग आध्यात्मिक जीवन प्राप्त करने में रूचि रखते हैं , वे भगवान् श्रीचैतन्य की कृपा से माया के बंधन से सरलता से छूट सकते हैं।भगवान् श्रीचैतन्य की शिक्षाओं का अध्यन करने से दिव्य ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं।
श्रीचैतन्य चरितामृत के तीन खण्ड है, जिन्हे लीला कहा जाता है। ये हैं– आदि लीला, मध्य लीला तथा अन्त्य लीला। आदिलीला के सत्रह अध्यायों में से प्रथम बारह अध्याय सम्पूर्ण ग्रन्थ प्रस्तावना स्वरुप है। वैदिक शास्त्रीय प्रमाणों द्वारा कृष्णदास कविराज यह स्थापित करते हैं कि श्रीचैतन्य महाप्रभु भगवन कृष्ण के अवतार है।लेखक यह भी प्रमाणित करते है कि श्रीचैतन्य महाप्रभु भगवान् श्री कृष्ण से अभिन्न है और इस अधम युग के पतितात्माओ को महामंत्र के संकीर्तन का प्रचार करके शुद्ध भगवत प्रेम उदारतापूर्ण वितरित करने के लिए अवतरित हुए हैं ।इसके उपरान्त्त लेखक इस ग्रन्थ के बारहवे अध्याय में इस जगत में श्रीचैतन्य महाप्रभु के अभिर्भाव का गुह्य प्रयोजन, उनके सह – अवतारों तथा प्रमुख भक्तो का वर्णन किया है और उनकी शिक्षाओं का सार प्रस्तुत की हैं।इसमें उनके बचपन के चमत्कारों, अध्ययन , विवाह तथा उनकी अनन्य दिव्य बाल लीलाओ अथवा उनकी शिक्षाओं का वर्णन है। आदि लीला के शेष अध्याओं(१३ -१७ )में लेखक चैतन्य महाप्रभु के दिव्य जन्म तथा संन्यास ग्रहण करने तक के जीवन का संछिप्त में वर्णन किया है।तीनो लीलाओ में सबसे लम्बी मध्य्लीला कि विषय वास्तु श्रीचैतन्य महाप्रभु द्वारा एक सन्यासी, शिक्षक , दार्शनिक, तथा गुरु एवं योगी के रूप में सारे भारत की विस्तृत एवं घटनापूर्ण यात्राओं का विशद वर्णन है। महाप्रभु की आपने शिष्यों को दी गई शिक्षाओं का भी संक्षेप में वर्णन है।इस खंड में उड़ीसा में होने वाले विशाल जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के अवसर पर चैतन्य महाप्रभु कि चमत्कारपूर्ण लीलाओ का विस्तृत विवरण सम्मिलित है। अन्त्य लीला में श्री चैतन्य महाप्रभु कि प्रकट उपस्तिथि के अंतिम अठारह वर्षो का विवरण है। इन अंतिम वर्षो में श्रीकृष्ण चैतन्य भाव समाधी में गहरे उतरते गए, जो समस्त पूर्वी अथवा पाश्यात्य धार्मिक तथा साहित्यिक इतिहास में अदिव्तीय है। उनके नित्य संगी स्वरूप दामोदर गोस्वामी द्वारा दिए गए प्रत्यकदर्शी विवरण, जिनसे श्री चैतन्य कि शाश्वत तथा नित्य परमानन्द की अवस्था प्रकट होती हैं, आधुनिक मनोविज्ञानियों प्रत्यक्षवादियों के धार्मिक अनुभवों कि विवरणात्मक क्षमताओं को स्पष्ट रूप से चुनौती देने वाली है।
श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं से मानव आध्यात्मिक कार्यो के सर्वोच्च पद को प्राप्त कर सकता है जो भवबंधन से मुक्ति पाने के बाद ही आरम्भ हो सकते है। यह ग्रन्थ श्रीचैतन्य – चरितामृत में वर्णित भगवान् चैतन्य कि शिक्षाओं को हृदयंगम करने से मानव समाज को आध्यात्मिक जीवन का नवीन प्रकाश निश्चित ही मिलेग। श्रीचैतन्य- चरितामृत का ध्यानपूर्वक ,निरपराध तथा पूर्णश्रद्धा से अध्यन करने वाले निसन्देय कृष्णभावनामृत के रस का आस्वादन करेंगे। ।
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