मृत्यु की पराजय
अकसर जब हम किसी ऐसी चीज़ के बारे में जानने के कोशिश करते है जिसे हम नहीं जानते तो हम उन लोगो से सलाह लेते है जिन्होंने उसका अनुभव किया हो। इसी तरह , मृत्यु किसी के भी जीवन का सबसे कठिन और कठोर सत्य है जो स्वाभाविक रूप से किसी व्यक्ति के दिमाग को यह पता लगाने के लिए उकसा सकता है कि मृत्यु कैसे होगी ? क्या वह बहुत ही भयावक है ? क्या शरीर छोड़ना सच में दर्दनाक होता है ? एक गंभीर सवाल यह भी होता है कि क्या मृत्यु के बाद जीवन कि कोई सम्भावना है ? क्या धार्मिक सिद्धांत को छोड़ के कोई वैज्ञानिक सिद्धांत भी है जो इस बात कि पुष्टि करे जो आत्मा और वास्तविका के मौलिक प्रकृति के बारे में महत्वपूर्ण सत्य को सही ठहरता है ताकि आप अपने आप को मृत्यु और मृत्यु के साथ अपनी मुठभेड़ के लिए बेहतर तरीके से तैयार कर सके।
कई बार जब व्यक्ति मृत्यु शैय्या पर होता है वह कई ऐसे अनुभव करता है जिससे कि यह प्रमाणित हुआ हो कि मृत्यु के बाद भी जीवन है। एमोरी यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के डॉक्टर माइकल सबोम जैसे व्याज्ञानिक ने अपने विस्तृत अध्ययन रिकलेक्शन ऑफ़ डेथ : ए मेडिकल इन्वेस्टीगेशन [१९८२] में उन्हें शरीर से बहार कि वास्तविकता और अनुभव के बारे में आशास्वत किया है। सबोम ने लिखा : क्या भौतिक मस्तिक्ष से अलग होने वाला मन संक्षेप में व आत्मा हो सकती है जो धार्मिक सिधान्तो के अनुसार अंतिम शारीरिक मृत्यु के बाद भी मौजूद रहे ? इस प्रकार यह पुस्तक उन बुद्धिजीवियों के लिए है जो जीवन के सबसे गहरे प्रश्न को ढूंढ़ने का प्रयास कर रहे है।
हमने इसे एक नाटकीय शक्तिशाली आकर्षक और आध्यात्मिक बहस के माध्यम से दर्शाया है जो उत्तेजित करने के लिए बाध्य करेगा। जो अजामिल के अनुभव से दर्शाया जायगा जिसने इसी प्रकार मानव रूपी भयावक मृत्यु के दूतो का सामना किया। यह कहानी भारत के सबसे महान ग्रन्थ श्रीमद भागवत से लिया गया है। इस परम प्रश्न कि जानकारी ही इस पुस्तक का वास्तविक उद्देश्य है जिनके लेखक स्वामी भक्तिवेदान्त श्रील प्रभुपाद है।
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